पुराने दोस्तों की मेज़बानी याद आयेगी
तुम्हें महलों में भी बस्ती पुरानी याद आयेगी
वो फुर्सत की दुपहरी और वो फरमाइशी नगमे
तुम्हें परदेस में आकाशवाणी याद आएगी
समंदर का सुकूं बेचैन कर देगा तुम्हें जिस दिन
नदी की शोख लहरों की रवानी याद आएगी
फकीरी सल्त्नत है हम फकीरों की तुम्हें इक दिन
हमारी सल्तनत की राजधानी याद आएगी
कभी जब आसमानों की हदों का ज़िक्र होगा तो
थके हारे परिंदों की कहानी याद आएगी
गले लग जाएगा आकर वो इक दिन देख लेना तुम
उसे खुद दी हुई अपनी निशानी याद आएगी
-राजीव भरोल
तुम्हें महलों में भी बस्ती पुरानी याद आयेगी
वो फुर्सत की दुपहरी और वो फरमाइशी नगमे
तुम्हें परदेस में आकाशवाणी याद आएगी
समंदर का सुकूं बेचैन कर देगा तुम्हें जिस दिन
नदी की शोख लहरों की रवानी याद आएगी
फकीरी सल्त्नत है हम फकीरों की तुम्हें इक दिन
हमारी सल्तनत की राजधानी याद आएगी
कभी जब आसमानों की हदों का ज़िक्र होगा तो
थके हारे परिंदों की कहानी याद आएगी
गले लग जाएगा आकर वो इक दिन देख लेना तुम
उसे खुद दी हुई अपनी निशानी याद आएगी
-राजीव भरोल
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 02 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उत्तर देंहटाएंयशोदा जी धन्यवाद
हटाएंवाह!!!
उत्तर देंहटाएंबहुत लाजवाब...
धन्यवाद सुधा जी.
हटाएंवाह!!बहुत खूब।
उत्तर देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी
हटाएंगले लग जाएगा आकर वो इक दिन देख लेना तुम
उत्तर देंहटाएंउसे खुद दी हुई अपनी निशानी याद आएगी